Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


किस्मत/क़िस्मत सुभद्रा कुमारी चौहान

(१)
"भौजी, तुम सदा सफेद धोती क्यों पहनती हो ?"
"मैं क्या बताऊँ, मुन्नी”।
“क्यों भौजी ! क्या तुम्हें अम्मा रंगीन धोती नहीं पहिनने देती?"
"नहीं मुन्नी ! मेरी किस्मत ही नहीं पहनने देती, अम्मा भी क्या करें ?"

किस्मत कौन है, भौजी ! वह भी क्या अम्मा की तरह तुमसे लड़ा करती है और गालियाँ देती है ।”
सात साल की मुन्नी ने किशोरी के गले में बाहें डाल कर पीठ पर झूलते हुए पूँछा–“किस्मत कहाँ है ? भौजी मुझे भी बता दो ।”
सिल पर का पिसा हुआ मसाला कटोरी में उठाते हुए किशोरो ने एक ठंडी साँस ली; बोली-"किस्मत कहाँ है मुन्नी, क्या बताऊँ"।

अँचल से आँसू पोंछकर किशोरी ने तरकारी बघार दी। खाना तैयार होने में अभी आध घन्टे की देर थी। इसी समय मुन्नी की माँ गरजती हुई चौके में आईं; बोली दस, साढ़े दस बज रहे हैं। अभी तक खाना भी नहीं बना ! बच्चे क्या भूखे ही स्कूल चले जायेंगे ? बाप रे बाप !! मैं तो इस कुलच्छनी से हैरान हो गई। घर में ऐसा कौन सा भारी काम है, जो समय पर खाना भी नहीं तैयार होता है ? दुनियाँ में सभी औरतें काम करती हैं। या तू ही अनोखी काम करने वाली है !"

एक साँस में, मुन्नी. की माँ इतनी बातें कह गईं; और पटा बिछाकर चौके में बैठ गईं। किशोरी ने डरते-डरते कहा-“अम्मा जी, अभी तो नौ ही बजे हैं; आध घंटे में सब तैयार हो जाता है तुम क्यों तकलीफ करती हो ?”

चिमटा खींच फर किशोरी को मारती हुई सास बोलीं-“तु सच्ची और मैं झूठी ? दस बार राँड से कह दिया कि जबान न लड़ाया कर पर मुँह चलाए ही चली जाती है । तू भूली किस घमंड में है ? तेरे सरीखी पचास को तो मैं उँगलियों पर नचा दूँ। चल हट निकल चौके से।”

आँख पोंछती हुई किशोरी चौके से बाहर हो गई। ज़रा सी मुन्नी अपनी माँ का यह कठोर व्यवहार विस्मय भरी आँखों से देखती रह गई। किशोरी के जाते ही वह भी चुपचाप उसके पीछे चली । किन्तु तुरंत ही माता की डाँट से वह लौट पड़ी।
इस घर में प्रायः प्रति दिन ही इस प्रकार होता रहता था ।

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